Thursday 15 October 2015
Friday 9 October 2015
आगाज़
ब्लॉगिंग की दुनिया में पहला कदम, सपनों के साथ। सोचिए, अगर सपनों के रंग जिंदगी में न होते, तो...। सपने केवल वे नहीं जो हम बंद आंखों से देखते हैं। हमारी उम्मीदें भी एक तरह का सपना ही होती हैं, ऐसा सपना जो हम खुली आंखों से पूरे होशोहवास में देखते हैं।
सपनों के कई रंगों में रंगी कुछ पंक्तियां-
1. ख्वाहिश तो थी
इन आंखों के सपनों को
तुम्हारी आंखों तक पहुंचने की
एक मुकम्मल ख्वाब बनने की
एक ही झोंके से बिखर गईं
तिनका-तिनका संजोई ख्वाहिशें।
2. कुछ आंखों में थे
सपने
जो कल शायद सच हों;
शायद न भी हों।
कुछ आंखों में था दर्द
सपनों के टूट जाने का,
कुछ आंखों में थी
टूटे सपनों की टीस,
कुछ जोड़ी आंखें बयां कर रही थीं
सपने न देख पाने की कसक।
बिना सपनों वाली भी थीं
एक जोड़ी उदास, वीरान आंखें
कुछ सवाल आगोश़ में समेटे
हकीकत की पलकों को
ख़ुद पर लपेटे।
...पर
ज़िंदगी का नशा सब पर भारी था
सपने
जो कल शायद सच हों;
शायद न भी हों।
कुछ आंखों में था दर्द
सपनों के टूट जाने का,
कुछ आंखों में थी
टूटे सपनों की टीस,
कुछ जोड़ी आंखें बयां कर रही थीं
सपने न देख पाने की कसक।
बिना सपनों वाली भी थीं
एक जोड़ी उदास, वीरान आंखें
कुछ सवाल आगोश़ में समेटे
हकीकत की पलकों को
ख़ुद पर लपेटे।
...पर
ज़िंदगी का नशा सब पर भारी था
3. सपने डूब जाते हैं
जिंदगी फिर भी
तैरती है।
सपनों के डूब जाने
जिंदगी नहीं डूबती, नहीं मरती।
बेनूर जिंदगी की
उदास आंखों में
पलता है
फिर एक नया सपना,
हकीकत की ज़मीन पर
बोता है
फ़िर एक नयी फसल...
जिंदगी फिर भी
तैरती है।
सपनों के डूब जाने
या फिर मर जाने से
बेनूर जिंदगी की
उदास आंखों में
पलता है
फिर एक नया सपना,
हकीकत की ज़मीन पर
बोता है
फ़िर एक नयी फसल...
अंतत: पाश की कुछ पंक्तियां...
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब सहन कर जाना....
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।
क्योंकि सपनों के मर जाने का मतलब है जिंदगी का ठहर जाना और ठहर जाना यानी खत्म हो जाना।
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